रूह के नासुरो का हाकिम मिलता नही- Hindi Two Line Shayri

रूह के नासुरो का हाकिम मिलता नही- Hindi Two Line Shayri


जिस्म के ज़ख्म हों तो मरहम भी लगाएँ

रूह के नासूरों का हकीम मिलता नहीं हमें।



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तुझको देखूँ तो इस तरह से देखूँ मैं

शर्म आँखों में रहे, और खता हो जाये..


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वो बदल गयी, वक्त की मजबूरियाँ बोलकर,

साफ शब्दों में खुद को, बेवफा न बोली।

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एक पहुंचे हुए  पीर ने कहा था,
जिस मुहब्बत का जवाब न आये

उसे इश्क़ कहते हैं,

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थोड़े ओले इस दिल में भी बरसा दे ए मालिक,

गमो की फसल अब भी खड़ी है यहाँ।

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ले आओ कहीं से
मोह़ब्बत के हकीम  को,

यहां तो सब इश्क़ के मरीज है।

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सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब,

वो बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता।

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बिखरी हुई वो ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई,

मैं भी शरीक हूँ तेरे हाल-ए-तबाह में।

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