मेरे प्यार की दो लफ्ज़ कोई जाकर उससे कह दो ना- दर्द शायरी

मेरे प्यार की दो लफ्ज़ कोई जाकर उससे कह दो ना- दर्द शायरी


जिन्दा लाश की तरह जी रहा हु,

 इस दर्द-ए-तन्हाई में,

 

मेरा एक काम तुम सब कर दो ना,

मेरे प्यार की दो लफ्ज़ कोई उससे जाकर कह दो ना।


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 किस्मत की लकीरों में नहीं था नाम उसका शायद,

जबकि उससे मुलाकात तो हर रोज़ होती थी।


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कभी ऊब जाओ मुझसे तो छोड़ देना,

तुम्हारी किताब का पन्ना हूँ, मोड़ देना।


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ले आओ कहीं से
मोह़ब्बत के हकीम  को,

यहां तो सब इश्क़ के मरीज है



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सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब,

वो बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता।



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बिखरी हुई वो ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई,

मैं भी शरीक हूँ तेरे हाल-ए-तबाह में।



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इक वही शख़्स मुझ को याद रहा,

जिस को समझा था कि भूल जाऊँगा.!


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